🔸 भूमिका
सोमवंश भारतीय पुराणों में वर्णित एक अत्यंत प्राचीन और दिव्य राजवंश है, जिसकी उत्पत्ति स्वयं चन्द्रमा (सोम) से मानी जाती है। यह कथा न केवल राजवंशीय इतिहास है, बल्कि धर्म, तप, मर्यादा और मोह-माया के संतुलन का भी श्रेष्ठ उदाहरण है।
इस ब्लॉग में हम अग्निपुराण के आधार पर सोमवंश की पूरी कथा को क्रमबद्ध और गूढ़ तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं !
🌸 ब्रह्मा से सोम तक की उत्पत्ति
भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा के पुत्र महर्षि अत्रि से सोम (चन्द्रमा) की उत्पत्ति हुई। चन्द्रमा ने राजसूय यज्ञ करके तीनों लोकों का राज्य दान में दे दिया, जिससे वे अत्यंत प्रसिद्ध हुए।
💫 चन्द्रमा और नौ देवियों का आकर्षण
अवभृथ स्नान के समय नौ देवियाँ चन्द्रमा के रूप और तेज से आकर्षित होकर उनके पास आ गईं।
उन्होंने अपने-अपने पति (जैसे कर्दम, अग्नि, धाता, प्रभाकर, जयन्त, कश्यप आदि) को त्याग दिया और चन्द्रमा की सेवा में लग गईं।
यहाँ से चन्द्रमा के कामप्रधान व्यवहार की शुरुआत होती है।
⚔️ चन्द्रमा द्वारा तारा का अपहरण और ‘तारकामय युद्ध’
कामवश चन्द्रमा ने देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण कर लिया। इससे देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ जिसे तारकामय संग्राम कहा जाता है। अंततः ब्रह्मा ने हस्तक्षेप किया और तारा को वापस बृहस्पति को सौंपा।
तब तक तारा गर्भवती हो चुकी थीं। उनके गर्भ से एक तेजस्वी बालक जन्मा जिसने कहा, “मैं चन्द्रमा का पुत्र हूँ।” यही बालक आगे चलकर बुध कहलाया।
👑 बुध से पुरूरवा और उर्वशी
बुध से राजा पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से अप्सरा उर्वशी ने विवाह किया और उनके साथ 59 वर्षों तक गंधर्व जीवन व्यतीत किया।
पुरूरवा ने अग्नि को तीन रूपों में विभाजित किया — गार्हपत्य, आहवनीय, दक्षिणाग्नि, और अंततः गंधर्वलोक प्राप्त किया।
🧬 सोमवंश का विस्तार
उर्वशी से पुरूरवा को आयु, दृढ़ायु, अश्वायु, धनायु, वसु आदि आठ पुत्र प्राप्त हुए।
आयु के पुत्र नहुष और उनके पुत्र ययाति हुए। ययाति की दो पत्नियाँ थीं:
- देवयानी (शुक्राचार्य की पुत्री) — जिनसे यदु और तुर्वसु हुए।
- शर्मिष्ठा (दानवराज वृषपर्वा की पुत्री) — जिनसे द्रुह्यु, अनु, और पूरु हुए।
इन्हीं में से यदु और पूरु ने सोमवंश को आगे बढ़ाया।
📜 इन्द्र का राज्य और रजि के पुत्र
राजा रजि, जो विष्णु के वरदान प्राप्त थे, उन्होंने देवताओं की रक्षा की। बाद में रजि के पुत्रों ने इन्द्र का राज्य छीन लिया, लेकिन बृहस्पति ने देवमंत्र के प्रभाव से वह राज्य पुनः इन्द्र को दिलाया।
🧘 यति और ययाति की कथा
यति, नहुष के पुत्र, भगवान विष्णु के ध्यान से सिद्ध हो गए।
ययाति ने अपने पुत्र पूरु को राज्य सौंपा, जिससे पूरव वंश की नींव पड़ी, जो बाद में कुरु वंश और फिर महाभारत तक पहुँचा।
📌 निष्कर्ष: सोमवंश का सांस्कृतिक महत्व
सोमवंश केवल राजाओं की वंशावली नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता का धार्मिक, नैतिक और ऐतिहासिक आधार है। इसमें हमें चन्द्रमा के तेज, बुध की बुद्धि, पुरूरवा का प्रेम, और ययाति की नीति जैसे जीवन-सिद्धांत मिलते हैं।